कभी संदेह के दायरे में नहीं रही व्यक्तिगत ईमानदारी
परमाणु समझौते में विजेता बनकर उभरे
पीएम के रूप में मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में किसी बड़े विवाद की झलक नहीं मिली, सिवाय इसके कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते उन्हें राजद के तस्लीमुद्दीन सरीखे कुछ ऐसे मंत्री बनाने पड़े जिन्हें दागी कहा जाता था। पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर सहयोगी दलों ने ही सवाल उठाए, लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाने में मनमोहन सिंह ने अपनी पूरी राजनीतिक पूंजी झोंक दी और वह विजेता बनकर उभरे।
पांच बड़े घोटालों ने बढ़ाई थी बेचैनी
2009 के आम चुनाव में अप्रत्याशित, लेकिन आखिरकार आसान जीत के बाद दोबारा पीएम बने मनमोहन सिंह के लिए दूसरा कार्यकाल उतना ही कठिन साबित हुआ जब लगभग पूरे पांच साल वह घपले-घोटालों के नए-नए मामलों या उनमें हो रहे रहस्योद्घाटनों से परेशान और बेचैन रहे। पांच बड़े घोटालों की संयुक्त धनराशि चार लाख करोड़ रुपये तक बताई गई। इसी ने तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा को यह कहने का मौका दिया कि मनमोहन सिंह के राज में अभूतपूर्व धांधली हुई है।
अपनों ने भी बनाई दूरी
2जी, कोयला घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में गड़बड़ी, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी, एंट्रिक्स धांधली कुछ प्रमुख प्रकरण हैं, जिनमें हजारों-लाखों करोड़ रुपये के घोटालों की बातें हुईं। इसी दौरान लोकपाल की मांग को लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन-धरने ने जैसे मनमोहन सिंह की बतौर पीएम छवि ही नष्ट कर दी। जैसे-जैसे माहौल उनके खिलाफ होता गया, वैसे-वैसे उनके अपने उनके खिलाफ होते गए।
जब राहुल गांधी ने फाड़ दिया था अध्यादेश
28 सितंबर 2013 को दागी-सजायाफ्ता नेताओं को राहत देने के लिए लाए गए संप्रग सरकार के अध्यादेश को भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में फाड़कर तत्कालीन कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पीएम के रूप में मनमोहन सिंह के प्रभाव और सम्मान को जाने-अनजाने और सीमित कर दिया।