जगदलपुर। नक्सल हिंसा से प्रभावित बस्तर में जहां कभी बम और बारूद की गंध परेशान करती थी, वहां इन दिनों ‘प्रेम’ के प्रतीक गुलाब की महक बढ़ रही है। पिछले चार-पांच वर्ष में बस्तर के किसानों ने कृषि में आधुनिक तकनीक के प्रयोग से अपने खेतों में गुलाब उगाना प्रारंभ किया, जिसका सफल परिणाम सामने आ रहा है। यहां का गुलाब कई राज्यों में बेचा जा रहा है। फूलों की खेती से यहां के किसान भी समृद्ध हो रहे हैं।
हर साल 10 से 12 लाख रुपये की आय
बस्तर में पहली बार वर्ष 2020 गुलाब की खेती प्रारंभ हुई थी तब से अब तक लगभग 30 किसान गुलाब की खेती से जुड़ चुके हैं। अब बस्तर जिले में 40 एकड़ क्षेत्र में गुलाब की खेती हो रही है। प्रतिदिन 50 हजार से अधिक फूलों का उत्पादन हो रहा है, जिसे भुवनेश्वर, कोलकाता जैसे शहरों में बेचा जाता है। इससे किसानों को प्रति एकड़ एक वर्ष में 10 से 12 लाख रुपये की आय भी हो रही है।
डच गुलाब की खेती
गांवों में किसान आधुनिक कृषि पद्धति से गुलाब सहित अन्य फूलों की खेती करने लगे हैं। इसमें डच गुलाब की खेती भी शामिल है। इसकी खेती केवल पालीहाउस में ही होती है। इसका रस गन्ने के रस से ज्यादा मीठा होता है। सरकार पाली हाउस में गुलाब की खेती के लिए 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है। इसके लिए उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की वेबसाइट पर पंजीकरण कराना होता है।
पहले वर्ष में ही 15 लाख से अधिक की आमदनी
सेवानिवृत अधिकारी डा. कमल सिंह सेते ने जगदलपुर से लगभग 20 किमी दूर जमावाड़ा गांव में पालीहाउस तकनीक के माध्यम से गुलाब की खेती शुरू की थी। वह खंड चिकित्सा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) की योजना वाणिज्यिक बागवानी के तहत 65 लाख रुपये से प्रोजेक्ट तैयार कर खेती प्रारंभ की। इसमें आसानी से बैंक से लोन भी मिल गया।
एक साल में गुलाब बेचकर 10-12 लाख की कमाई
अपने खेत में नीदरलैंड के डच गुलाब, जुमेलिया गुलाब व गुलाबी गुलाब की तीन प्रजाति लगाई । तीन माह में ही उत्पादन शुरू हो गया। पहले वर्ष लगभग 24 लाख रुपये का गुलाब बेचा, जिससे 15 लाख रुपये से अधिक की कमाई हुई। दो वर्ष बाद उत्पादन थोड़ा कम हुआ है, पर 10 से 12 लाख रुपये प्रतिवर्ष की आमदनी अभी भी हो रही है।
परंपरागत खेती छोड़ कर रहे फूलों की खेती
किसान सुरेंद्र नाहर परंपरागत रूप से धान व सब्जियों की खेती करते थे, पर अब वह गुलाब की खेती कर रहे हैं। सुरेंद्र बताते हैं कि शहर के आसपास बहुत से लोगों को गुलाब की खेती करते देखने के बाद उन्होंने भी एनएचबी की सहायता से गुलाब उगाना शुरू किया। शुरू के नौ माह में ही वे लगभग दस लाख रुपये का गुलाब बेच चुके हैं।
कंपनी से भी अनुबंध
बागवानी बोर्ड से जुड़ने के बाद उन्होंने एक कंपनी से अनुबंध किया है। कंपनी के लोग ही गुलाब खरीदते हैं। इससे बेचने की समस्या भी नहीं रहती । प्रतिदिन एक हजार से अधिक गुलाब का उत्पादन वह कर रहे हैं। थोक में पांच रुपये की दर से यह गुलाब बिक जाते हैं। डच प्रजाति के गुलाब की मांग अधिक है, इसलिए इसी
प्रजाति के फूल लगाए हैं।]
घोर नक्सल प्रभावित नारायणपुर में भी खेती
बस्तर जिले में चार वर्ष पहले शुरू हुआ फूलों की खेती का दायरा अब घोर नक्सल प्रभावित नारायणपुर क्षेत्र तक पहुंच चुका है। नारायणपुर के आदिवासी किसान देवीलाल दुग्गा ने चार वर्ष पहले खेती प्रारंभ की थी और अब उन्हें इससे अच्छा लाभ हो रहा है।
इसी तरह कोंडागांव के किसान रामसाय मरकाम व हितेंद्र देवांगन ने भी अपने खेतों में गुलाब उगाना प्रारंभ किया है। गुलाब के साथ जरबेरा, सेवंती जैसे कई प्रकार के फूलों की खेती की ओर भी किसानों का रुझान बढ़ रहा है।