ऐसा रहा 300 रुपये से तीन करोड़ रुपये तक का सफर
300 रुपये से तीन करोड़ कमाने तक की प्रेरक यात्रा को साझा करते हुए तारिक बताते हैं कि पिता किसान थे। थोड़ी जमीन पर खेती से मुश्किल से हमारा पेट पालते थे। हम चार भाई-बहन हैं। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। घर के हालात देख दिहाड़ी मजदूरी करने लगे। वर्ष 2009 में दिल्ली गए और कबाड़ फैक्ट्री में नौकरी मिली। प्लास्टिक, पालीथिन, कागज, पुराने टिन आदि को बोरियों में रखना या वाहन से नजदीकी कचरा निस्तारण इकाइयों तक पहुंचाना होता था।
जिले को स्वच्छ रखने में भी दी मदद
लगभग चार लाख आबादी वाले कुलगाम जिले की सड़कों से आधे से अधिक कचरा तारिक की कचरा इकाई में लाया जाता है जहां से इसे प्रोसेसिंग के बाद नए उत्पादन बनाने के लिए जम्मू-कश्मीर से बाहर भेजा जाता है। जिले की म्युनिसिपल काउंसिल के चेयरमैन मुनीब अहमद जरगर कहते हैं कि तारिक इस उद्यम से अच्छी कमाई कर रहे हैं, लेकिन उनकी इस कोशिश से जिले में कचरा प्रबंधन में भी काफी मदद मिल रही है।
100 लोगों को मिला रोजगार
तारिक की कचरा प्रबंधन इकाई में 100 लोगों को रोजगार मिला है। श्रमिकों को महीने में 10-15 हजार रुपये की आय हो जाती है। कुछ श्रमिक शहर से कचरा एकत्र करने का कार्य करते हैं तो कुछ के पास छंटाई के बाद कचरा कुलगाम से बाहर अन्य शहरों की कचरा प्रसंस्करण इकाइयों को भेजा जाता है। तारिक कहते हैं कि कचरा आसानी से मिल जाता है, बस उसे छंटाई करने के बाद प्रसंस्करण इकाइयों तक पहुंचाना होता है।