पिछले दो साल में आपने क्या पाया, क्या खोया?
मैंने न तो कुछ पाया और न ही कुछ खोया है, बल्कि मैंने काफी कुछ सीखा है। मैंने सीखा है कि एक वैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार को राजनीतिक खरीद-फरोख्त से कैसे बचाया जाए। जब हम सत्ता में आए तो संस्थागत बदलाव चाहते थे। उसे हासिल करने के लिए हमने करीब 100 पुराने और बेकार हो चुके कानूनों को खत्म कर दिया अथवा उनमें बदलाव किया है। हमने भ्रष्टाचार और लीकेज के सभी दरवाजे बंद करने की कोशिश की है। इसी वजह से हम महज एक साल में 2,200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने में समर्थ हुए हैं।
आपने इसे कैसे किया?
भाजपा की आबकारी नीति में शराब की दुकानों पर महज 10 फीसदी कर का प्रावधान था। यह एक निश्चित रकम थी जो काफी कम थी। मैंने कहा कि इस व्यवस्था को खुली नीलामी के जरिये बदल देते हैं। इसलिए हमने शराब की दुकानों के लिए प्रतिस्पर्धी बोली की ओर रुख किया। भाजपा के कार्यकाल में चार साल के दौरान शराब की दुकानों से प्राप्त सालाना राजस्व करीब 150 करोड़ (चार वर्षों में 600 करोड़ रुपये) हुआ करता था। मगर खुली नीलामी के जरिये हमने महज एक साल में 600 करोड़ रुपये अर्जित किए! राज्य ने 2023-24 में 1,815 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया जो इसके पिछले साल के 1,296 करोड़ रुपये के मुकाबले 40 फीसदी अधिक है। इसके अलावा हमने राज्य में बेची जाने वाली शराब के हर बोतल पर 10 रुपये का उपकर भी लगाया।
मैंने मुख्यमंत्री बनने से पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड से हुई बातचीत में आपको बताया था कि मेरी व्यापक योजना शराब की बिक्री से दूध की खरीद को क्रॉस-सब्सिडी देना है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस साल अप्रैल में दूध खरीद की कीमतों को 38 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 45 रुपये प्रति लीटर कर दिया। इसी प्रकार भैंस के दूध की कीमतें भी 38 रुपये से बढ़ाकर 55 रुपये प्रति लीटर कर दी गई हैं। अगर बेहतर कीमत के लिए दूध को खुले बाजार में बेचना चाहते हैं तो दुग्ध उत्पादक उसके लिए स्वतंत्र हैं। अन्यथा सरकार उसे खरीद लेगी।
इसके अलावा हमने मुफ्त बिजली की व्यवस्था में कुछ बड़े बदलाव किए। बड़े होटलों और कंपनियों को बिजली सब्सिडी मिलती थी। हमने कहा कि जो लोग आयकर देते हैं, उन्हें बिजली सब्सिडी की जरूरत नहीं है। साथ ही हमने निम्न आय वर्ग के परिवारों से कहा कि हम आपको मुफ्त बिजली देंगे ताकि आपका जीवन स्तर थोड़ा बेहतर हो सके। चुनाव नजदीक आने पर जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार ने 5,000 करोड़ रुपये के मुफ्त उपहार बांटे। नए संस्थान खोले गए, उन लोगों को भी बिजली-पानी मुफ्त उपलब्ध कराया गया जो इसके लिए भुगतान कर सकते थे और उन्हें भुगतान करना चाहिए था, महिलाओं को 50 फीसदी परिवहन सब्सिडी दी गई आदि। हमने उसे तर्कसंगत बनाया।
जब भाजपा सरकार रेवड़ी बांटने के बावजूद सत्ता में वापसी नहीं कर सही तो हम प्रशासनिक और नीतिगत बदलाव के जरिये कैसे परिणाम हासिल कर सकते थे? अब हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति पटरी पर लौट चुकी है। जब मैं मुख्यमंत्री बना था तो हिमाचल प्रदेश पर 75,000 करोड़ रुपये का कर्ज था। राज्य सरकार के कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग के तहत 10,000 करोड़ रुपये का बकाया देना था। मगर हमने अपनी वित्तीय स्थिति खराब होने के बावजूद उसका भुगतान किया। हमारे कार्यकाल में राज्य पर कर्ज 28,000 करोड़ रुपये हो गया। इसमें 1971 में राज्य द्वारा लिया गया कर्ज भी शामिल है। हमने मूलधन और ब्याज का कुछ हिस्सा चुका दिया है जो करीब 12,000 करोड़ रुपये का था। इसके अलावा हमने 20,000 करोड़ रुपये के तमाम कर्जों को निपटाया है।
अब हमारे पास 8,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। हमने विकास गतिविधियों पर जोर दिया ताकि हमारे राज्य को एक बार फिर राजकोषीय विवेक के लिए जाना जाए। हमने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को वापस लागू किया। इसके अलावा हम बाजरे पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने वाले देश का पहला राज्य हैं। ये हमारी कुछ उपलब्धियां हैं।
भविष्य के लिए आपकी क्या योजना है?
हम अपने राज्य के लिए ग्रीन बोनस चाहते हैं क्योंकि हम उत्तर भारत की सांस हैं। हमारी 67 फीसदी भूमि वन क्षेत्र है। पेड़ों की कटाई के मामले में दंडित करने का प्रावधान हमारे पास पहले से ही मौजूद है। भारत सरकार जलवायु परिवर्तन के दबावों से जूझ रही है और वह कार्बन उत्सर्जन को सीमित करना चाहती है। वह पौधरोपण के लिए पैसा लगा रही है। मगर हमारे जैसे राज्यों का क्या जो वन क्षेत्रों की रक्षा कर रहे हैं? पौधरोपण के लिए पैसा मिलता है लेकिन पेड़ों की सुरक्षा के लिए कोई पैसा नहीं मिलता। यह हिमाचल प्रदेश की एक बुनियादी मांग होगी। हम नालागढ़ में ऑयल इंडिया के साथ मिलकर 1 मेगावॉट की ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना लगा रहे हैं। हमारा लक्ष्य 2032 तक भारत का सबसे समृद्ध और सबसे अमीर राज्य बनना है।