
कितना कारगर है आज “सूचना का अधिकार,
दलतंत्र और अफसरशाही ने राईट टू इनफार्मेशन 2005 की नींव हिला डाली है। जब हमारे देश में इसे लागू किया गया, तब सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को विश्व के सर्वाधिक अच्छे कानून की श्रेणी में देखा गया था। इसे नागरिकों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया, इसके प्रावधान भी बेहद सरल रखे गये।
इस कानून के लागू होते ही आम लोगों को सरकारी काम काज, शासकीय धन के उपयोग तथा सार्वजनिक हित में लिये गये निर्णयों की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिला, किन्तु अब इस कानून की धार कम करने, इस पर अंकुश लगाने जैसे कुत्सित प्रयास चल रहे हैं और एक तरह से ईन प्रयासों को सफलता भी मिल रही है।
छत्तीसगढ़ राज्य में 12 अक्टूबर 2005 में ये अधिनियम लागू किया गया और ईसी के साथ छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया। ये बात अलग है कि कुछ ही समय बाद इस आयोग की कार्यप्रणाली, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, वर्षों तक शेष रिक्त पड़े सूचना आयुक्त के पदों पर नियुक्ति का ना होना, लंबित प्रकरणों के विशाल आंकड़े, प्रकरणों के निपटारे की कार्यवाही, चर्चा और सवालों के घेरे में रहे।
चर्चा तो इस बात को लेकर भी होती रही है कि सूचना आयोग में सत्ताधीशों के पक्षपाती रहे रिटायर्ड अफसरों को उपकृत किया जाता रहा है।
जहां पारदर्शिता और जवाबदेही को लोकतंत्र की बुनियाद माना जाना चाहिये, वहां सूचना का अधिकार (RTI) में जानकारी मांगना किसी अपराध जैसा बना दिया जाये,तो समझा जा सकता है कि सत्ता और सिस्टम कितने बेलगाम हो चुके हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्य में पिछले पांच वर्षों में, आरटीआई के तहत सूचना या जानकारी नहीं देने, जानकारी देने में जान बूझकर देर करने, अधूरी भ्रामक जानकारी देने की वजह से करीब 25 सौ अफसरों पर जुर्माना लगाया है।
किन्तु 22 सौ से अधिक अधिकारियों से जुर्माने की राशि वसूल नही की गई है। यह राशि चार करोड़ से अधिक है।
आयोग के अफसरों ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर दंडित अधिकारियों से जुर्माने की राशि वसूलने का आग्रह किया है, किन्तु राज्य सरकार द्वारा कोई ठोस पहल नहीं किये जाने से जुर्माने की राशि वसूल नही हो पा रही है।
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